एक राह चुनी है मैंने,
जहां भीड़ बड़ी कम थी।
छांव को दरख़्त नहीं,
मिट्टी थोड़ी नम थी।
कुछ शोर यहां से चीखा,
“बेवकूफ़ हो, कुछ नहीं कर पाओगे”
कुछ आवाजें वहां से आईं,
“चलते रहो, कुछ मन का कर जाओगे”
एक ने ज़िद्द बढ़ाई, दूसरे ने हिम्मत,
मेरे इरादों की बुलंदी को दोनों ही काम आए!
©charu gupta and potpourri of life.
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