जिंदगी मौत से मांगी ,चंद दिनों की मोहलत है
और कुछ नहीं
ज़माने में रखी गिरवीं दौलत है
और कुछ नहीं
हर रोज़ एक नया ख़्वाब
ओर हर ख़्वाब ख़ौफ़ज़दा
मुझे गिराने की साजिशें तमाम
विरोधियों की शौहरत है
ओर कुछ नहीं
जप तप नियम व्रत पूजन
और असंख्य देवों से याचना
और जब जग उठा-
तो खिलखिला उठी माँ मेरी
ये ज़श्न- ए- जिंदगी अपनी,
उसकी(माँ) इबादतों की बदौलत है
ओर कुछ नहीं
बेहिसाब ग़ुस्सा ,नफरत ,स्वार्थ
ओर ये बेमतलब का अपनापन
चन्द कूपडों(नदारतों)की शोहरत है
और कुछ नहीं
@सचिन
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